Saturday, December 2, 2023

दिल्ली में स्थानीय स्वायत्त शासन का विकास

सन् 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1862 में किसी एक प्रकार की नगर पालिका की स्थिति के कुछ सबूत मौजूद है। पंजाब सरकार की अधिसूचना दिनांक 13 दिसम्बर, 1862 द्वारा 1850 का अधिनियम दिल्ली में लागू हुआ था। नगर पालिका की पहली नियमित बैठक, 23 अप्रैल, 1863 को हुई थी। जिसमें स्थानीय निवासी आमंत्रित किए गए थे। 1 जून, 1863 को आयोजित हुई, अन्य बैठक की अध्यक्षता, दिल्ली के कमिश्नर ने की थी और उपयुक्त ढंग से उसके कार्यवृत लिखे गये थे।

वर्तमान टाउन हाल के भवन का निर्माण सन् 1866 में सम्पूर्ण हुआ था, जिस पर लगभग 1.86 लाख रूपये लागत आई थी। इसको पहले इन्स्टीट्यूट बिल्डिंग कहा जाता था। सन् 1864 और 1869 के मध्य घंटाघर का निर्माण किया गया था जिस पर 22,134/- रूपये की लागत आई थी।

सन् 1874 में नगर पालिका ने सरकारी नजूल सम्पत्तियों को हस्तगत किया था। सन् 1881 में नगर पालिका को प्रथम श्रेणी की कमेटी में वर्गीकृत किया गया और उसके 21 सदस्य थे तथा समस्त सदस्य नामजद किये जाते थे। इन सदस्यों में 6 सदस्य अधिकारी वर्ग के होते थे तथा शेष सदस्य गैर-सरकारी होते थे। इन गैर-सरकारी सदस्यों में 3 यूरोपियन, 6 हिन्दू और 6 मुसलमान होते थे। सदस्यों को चुननें के चुनाव-सिद्धांत को बाद में 1884 में लागू किया गया और इसके अगले वर्ष नगर पालिका में 4 पदेन सदस्य, 5 मनोनीत सदस्य और 12 वाडों से चुनकर आने वाले सदस्य होते थे। अधिनियम में आगे यह भी व्यवस्था थी कि दो-तिहाई सदस्य वेतनभोगी अधिकारी वर्ग के अतिरिक्त व्यक्ति होंगें। दिल्ली का डिप्टी कमिश्नर राजपत्रित प्रेसीडेंट होता था।

दिल्ली में बृहद दरबार के उपरान्त नगर पालिका के गठन में पुनः परिवर्तन किया गया। पदेन सदस्यों की संख्या घटाकर 3 कर दी गई और निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या को भी घटाकर 11 कर दिया। मनोनीत सदस्यों की संख्या 11 कर दी गई। 1921-22 में नियमों में पुनः संशोधन किया गया और नगर को 12 वार्डों में विभक्त किया गया। जहां से एक हिन्दू और एक मुसलमान सदस्य चुनकर भेजा जाता था। सदस्यों की संख्या बढ़कर 36 हो गई थी, जिसमें 2 पदेन, 4 मनोनीत किए जाते थे, विशिष्ट अभिरूचि द्वारा चुने हुए 6 सदस्य तथा वाडों से 24 सदस्य चुने जाते थे। साम्प्रदायिकता की भावना का


सूत्रपात किया गया और एक मतदाता केवल अपने ही धर्म-सम्प्रदाय के प्रार्थी को मत दे सकता था। 1936 में जनगणना के आधार पर बाद में सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई और नवगठित नगर पालिका में 3 पदेन, 6 विशिष्ट अभिरूचि वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले, 7 मनोनीत और 28 वार्डों से चुनकर आये सदस्य होते थे। 1946 में लोगों को अपने प्रेसीडेंट (अध्यक्ष) को चुनने का अधिकार दिया गया। शेख हबीबुर्रहमान चुने हुए पहले अध्यक्ष थे और उनके पाकिस्तान चले जाने के उपरान्त डा० युद्धवीर सिंह को उनके स्थान पर अध्यक्ष चुना गया। वयस्क मताधिकार के अधिकार पर नियमित चुनाव 15 अक्तूबर, 1951 को हुए। सदस्यों की संख्या बढ़कर 63 हो गई जिसमें 50 सदस्य सीधे चुनाव लड़कर आते थे। निर्वाचन क्षेत्रों की कुल संख्या 47 थी, जिसमें 3 निर्वाचन क्षेत्र द्वि-सदस्यीय क्षेत्र थे, जहां से अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व होता था। चार सीटें औद्योगिक तथा व्यापारी वर्ग के लिए सुनिश्चित थी और दो सीटें औद्योगिक कर्मियों के लिए थी। चार पदेन सदस्य होते थे। चीफ कमिश्नर के अतिरिक्त तीन अन्य मनोनीत सदस्य होते थे। बाद में अनुसूचित जाति के सदस्यों की संख्या को दुगना कर दिया गया। इस प्रकार सदस्यों की कुल संख्या 69 हो गई, जिनमें से 56 सदस्य सीधे चुनाव लड़ कर आते थे।

स्वाधीनता प्राप्ति के उपरान्त, दिल्ली को स्वतन्त्र भारत की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ। राजधानी नगर के गणमान्य प्रतिनिधि होने के नाते, सदस्यों को विदेशी अभ्यागतों तथा प्रख्यात व्यक्तियों का नागरिक अभिनन्दन करने का अधिकार दिया गया। फरवरी, 1958 में श्री पी०आर० नायक को कमिश्नर फॉर लोकल अथॉरिटीज नियुक्त किया गया। संसद के एक अधिनियम द्वारा 7 अप्रैल, 1958 को दिल्ली नगर निगम की स्थापना की गई। इस प्रकार एक नये प्रयोग का उदय हुआ और राजधानी के नागरिक जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। तत्कालीन समय से निगम देश में अद्वितीय है, क्योंकि इसके सीमा क्षेत्र में ग्राम्य क्षेत्र भी सम्मिलित है। नई दिल्ली नगर पालिका तथा दिल्ली कैन्टोनमेंट बोर्ड के अतिरिक्त सभी दसों स्थानीय निकायों को निगम में विलय कर दिया गया।


ज्वाइन्ट वाटर एण्ड सीवेज बोर्ड, दिल्ली स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड और दिल्ली रोड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी नामक तीन परिनियत अधिकरणों को निगम के अधीन संस्थानों में परिणित कर दिया गया था। किन्तु संसद के एक अधिनियम द्वारा नवम्बर, 1971 में दिल्ली में परिवहन संस्थान को दिल्ली नगर निगम से अलग करके दिल्ली सड़क परिवहन निगम नामक एक स्वतन्त्र प्राधिकरण के रूप में गठित कर दिया गया। आरम्भ में निगम में 34 निर्वाचन क्षेत्रों से 80 निगम सदस्यों का चुनाव हुआ था तथा पार्षदों द्वारा निर्वाचित 6 एल्डरमैन थे।

श्रीमती अरूणा आसफ अली दिल्ली की पहली महापौर और लाला राम चरण अग्रवाल दिल्ली के पहले उप महापौर चुने गए। आईसीएस अधिकारी श्री पीआर नायक को दिल्ली नगर निगम के पहले आयुक्त नियुक्त किए गए।

सम्पूर्ण क्षेत्र 6 जोनों में विभक्त था। 1963 में विकेन्द्रीकरण योजना को लागू किया गया और आयुक्त तथा निगम में निहित अधिकारों को काफी सीमा तक अधिकारियों तथा विशेष क्षेत्रीय समितियों को सौंपा गया, जिससे वे स्थानीय समस्याओं को प्रभावपूर्ण ढंग से निपट सकें। पहले जोनों की संख्या 10 थी, लेकिन बाद में वह घटकर 7 रह गई जो ग्राम्य क्षेत्रीय समिति के अतिरिक्त थी। ये 10 क्षेत्रीय समितियां थी।

सन् 1967 में निगम सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर 100 कर दिया गया। एल्डरमेन की संख्या यथावत रही। 24 मार्च 1975 को निगम भंग कर दी गई। निगम की पांचवी अवधि के लिए चुनाव दिनांक 12 जून, 1977 को हुए। 11 अप्रैल, 1980 को गृह मन्त्रालय के आदेश से निगम को 6 मास के लिए भंग कर दिया गया और निगम अधिनियम के अन्तर्गत निगम के समस्त अधिकार निगमायुक्त को सौंप दिए गये। तदुपरान्त यह अवधि छह-छह मास के लिए पांच बार बढ़ायी गयी। 5 फरवरी, 1983 को चुनाव होने के पश्चात् निगम का छठी अवधि हेतु 28 फरवरी, 1983 को विधिवत् गठन किया गया। निगम का कार्यकाल फरवरी 1987 में समाप्त होने के उपरान्त इसे समय समय पर बढ़ाकर 6 जनवरी 1990 को भंग किया गया। इसके उपरान्त 31 मार्च, 1997 तक निगम में प्रशासक व विशेषाधिकारी नियुक्त रहे जिन्होंने नगर निगम के कार्यों का निष्पादन किया। निगम सेवाओं के विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संसदीय विधायकी द्वारा 1993 में दिल्ली नगर निगम (संशोधित) अधिनियम 1993 (अधिनियम 1993 का 67) में विस्तृत संशोधन किया गया। इसे 17 सितम्बर, 1993 को संसद द्वारा पारित किया गया और इसके प्रावधानों को 1 अक्तूबर, 1993 से लागू किया गया। इसमें 136 धाराएं है। इसके द्वारा निगम की संरचना, कार्यो, नियंत्रण व प्रशासन में मूल परिवर्तन लाए गए है।

पार्षदों तथा उप-नगरपालों (एल्डरमेन) से होती थी। संशोधित अनियन में उप-नगरपालों की प्रथा समाप्त कर दी गई है। पार्षदों की संख्या बढ़ाकर 134 कर दी गई है। इसके अतिरिक्त लोकसभा के सदस्य, जो नगर निगम के चुनाव क्षेत्रों का सम्पूर्ण अथवा आशिक रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं. राज्य सभा के सदस्य जो दिल्ली नगर निगम क्षेत्र के अन्तर्गत मतदाता के रूप में पंजीकृत है, भी इसके सदस्य बनाये गये। इनकी संख्या इस समय 10 है। दिल्ली विधानसभा के 1/5 सदस्य भी प्रत्येक वर्ष क्रमानुसार दिल्ली नगर निगम में प्रतिनिधित्व करेंगें। इस प्रकार अब निगम के सदस्यों की कुल संख्या बढ़ाकर 168 हो गई। नगर निगम की अवधि भी 4 वर्ष से बढ़ाकर 5 वर्ष कर दी गई। सशोधित नगर निगम में महिला पार्षदों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए भी स्थानों का आरक्षण है। महापौर का पद पहले वर्ष महिला एवं तृतीय वर्ष में अनुसूचित जाति के सदस्य के लिए आरक्षित किया गया है।

संशोधित अधिनियम के आधार पर 1997 में चुनाव होने के उपरान्त 1 अप्रैल 1997 को नगर निगम का पुनः विधिवत् गठन हुआ। तदुपरान्त पांच-पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर निगम का पुनर्गठन किया गया। इसके उपरान्त वर्ष 2011 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम में संशोधन कर दिल्ली नगर निगम को तीन निगमों उत्तरी, पूर्वी व दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के रूप में विभाजित कर दिया। उत्तरी दिल्ली नगर निगम में 6 जोन, पूर्वी में 2 जोन व दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में 4 जोन समाहित थे।। इस संशोधन के कारण काफी नीतिगत अधिकार दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आ गये। इस संशोधन के अनुरूप पहली बार तीनों दिल्ली नगर निगमों का गठन अप्रैल 2012 दूसरी बार तथा वर्ष 2017 में परिसीमन के उपरान्त तीनों नगर निगमों का गठन मई माह में हुआ। इन निगमों में निर्वाचित सांसद अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले निगमों के सदस्य हुआ करते थे। तीनों निगमों में 10-10 सदस्य भी उपराज्यपाल महोदय द्वारा मनोनीत किये जाते रहे। वर्ष 2017 के चुनाव से पूर्व हुए परिसीमन के कारण उत्तरी दिल्ली नगर निगम में क्षेत्रीय कार्यालयों में संतुलन बनाए रखने की दृष्टि से एक नए क्षेत्र केशवपुरम का सृजन किया तथा शहरी व सदर पहाडगंज क्षेत्रों का समावेश कर एक नए क्षेत्र का रूप दिया। तीन निगम होने से सभी के राजस्व के स्रोत का बंटवारा भी हो गया। इसमें सर्वाधिक लाभ दक्षिणी दिल्ली नगर निगम को हुआ। पाश इलाके दक्षिणी निगम इलाके में थे। ऐसे में इस निगम के पास संपत्तिकर से लेकर ट्रांसफर ड्यूटी से अच्छा खासा राजस्व आता था। 2012 के बाद तीन निगम होने के साथ ही दिल्ली सरकार से पर्याप्त धनराशि निगम संचालन के लिए नहीं मिलने की वजह से वेतन का संकट होने लगा था। इतना ही विकास कार्य भी प्रभावित होने लगे थे। कई-कई माह तक वेतन की समस्या और कर्मचारियों के लाभ मिलने भी दिक्कत रही थी। नए विकास कार्य फंड के अभाव में शुरू नहीं हो पा रहे थे। यही वजह रही कि वर्ष 2022 में तीनों निगम के आम चुनाव की घोषणा 9 मार्च 2022 को होनी थी। इसी दौरान दिल्ली राज्य चुनाव आयोग चुनाव की घोषणा के लिए प्रेसवार्ता बुलाई थी। परंतु केंद्र सरकार ने पत्र भेजकर दिल्ली राज्य चुनाव आयोग को सूचित किया कि वह तीनों निगमों का एकीकरण कर रहे हैं। ऐसे में चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा टाल दी। इसके बाद संसद के दोनों सदनों में दिल्ली के तीनों निगमों के एकीकरण का कानून पारित हुआ। 22 मई 2022 से दिल्ली के तीनों निगम को एकीकृत कर फिर से दिल्ली नगर निगम गठित कर दिया गया। साथ ही तीनों निगमों के कुल वार्ड की संख्या जहां पहले 272 थी उसे 250 तक सीमित कर दिया गया था। नए सिरे से निगम वार्ड का परिसीमन करने हेतु दिल्ली नगर निगम के विशेष अधिकारी के तौर आइएएस अश्वनी कुमार को नियुक्त किया गया। जबकि पूर्वकालिक दक्षिणी निगम में आयुक्त रहे ज्ञानेश भारती को निगमायुक्त नियुक्त किया गया। निगमों के वार्डों का परिसीमन और गठन के बाद 12 जोन बने। साथ ही 250 वार्ड बनाए। चार दिसंबर 2022 को दिल्ली नगर निगम के चुनाव हुए। वर्ष 2022 के चुनाव में जहां आम आदमी पार्टी (आप) को पहली बार निगम की सत्ता में आने के लिए 134 सीटें मिली। भाजपा को 104 तो कांग्रेस को 9 सीेटें मिली। 3 सीटें निर्दलीय के खाते में रही। जनवरी और फरवरी में दिल्ली नगर निगम आम सदन की बैठक में डा. शैली ओबेराय को दिल्ली की महापौर निर्वाचित किया गया। 29 नवंबर 2023 को दिल्ली नगर निगम की साधारण सभा की बैठक में एक जून को प्रत्येक वर्ष एमसीडी दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित हुआ।


- निहाल सिंह


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